*दुश्मनों की किताब में राजपूतों की वीरता की गाथा* रोहतास सिंह चौहान, विचारक नोएडा दुनिया के इतिहास में शायद क्षत्रिय ही सिर्फ इकलौती कौम है, जिसके वीरता और पराक्रम की गाथाएं दुश्मनों की लिखी हुई किताबों में अधिक मिलती है। भारत के इतिहास की किताब से राजपूत इतिहास के पन्ने फाड़ दिए गए हैं राजपूतों का गौरवशाली इतिहास कल के गर्त में दबा दिया गया है । मुगल, बामपंथियो और आजादी के बाद सत्ता चलाने वाले नेताओं ने राजपूताना इतिहास को उल्टा कर दिया । चंगेज खान और तैमूर के वंशज बाबर ने अपनी आत्मकथा पुस्तक "बाबरनामा"में अपने समय राजपूत "राणा सांगा"जी की शक्ति का वर्णन किया है, कि कैसे खानवा के युद्ध से पहले जिसमे उसने तोपो बंदुखो/बारूदो का इस्तेमाल नहीं किया था और उस कन्वेंशनल युद्ध में जिसे बयाना का युद्ध कहा जाता है। उस परंपरागत हुए युद्ध में किस तरह राजपूतों ने उसे बुरी तरह परास्त किया था। जब चंगेज खान का वंशज और मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर ने लिखा कि राजपूत अपनी वीरता तलवार पराक्रम के बल उस समय सबसे बड़ी शक्ति थे। जिनका सामना करने की हिम्मत दिल्ली गुजरात मालवे के सुल्तानों में एक भी बड़े सुल्तान में नहीं थी। ये ताकत राजपूतों की शुरुआती 16 वी सदी में थी। जब तुर्क अफ़ग़ान शक्तियां भी अपने चरम पर थी। तो राजपूतों को उनसे प्रमाण की जरूरत नहीं जिनका 18 वी सदी से पहले कोई इतिहास ही नहीं। पूरे उपमहाद्वीप में कोई गैर राजपूत शक्ति नहीं जिनके सैनिक शक्ति का वर्णन अरबों तुर्क अफगानो से लेकर अंग्रजों तक किताबों में दर्ज हो। राणा सांगा और राजपूतों की शक्ति का वर्णन "तारीख ए अहमद शाही उर्फ तारीख ए सलतानी अफगाना में 16 वी सदी के प्रसिद्ध अफ़ग़ान इतिहासकार अहमद यादगार सहित कई अफ़ग़ान इतिहासकारों ने भी किया है, कि कैसे मुट्ठी भर राजपूतों की सेनाओं ने इब्राहिम लोधी के अपने से दो से तीन गुना संख्या में ज्यादा होने के बावजूद अफ़ग़ान घुड़सवारों को परास्त किया था।

 *दुश्मनों की किताब में राजपूतों की वीरता की गाथा* 

रोहतास सिंह चौहान, विचारक नोएडा

दुनिया के इतिहास में शायद क्षत्रिय ही सिर्फ इकलौती कौम है, जिसके वीरता और पराक्रम की गाथाएं दुश्मनों की लिखी हुई किताबों में अधिक मिलती है।

भारत के इतिहास की किताब से राजपूत इतिहास के पन्ने फाड़ दिए गए हैं राजपूतों का गौरवशाली इतिहास कल के गर्त में दबा दिया गया है । मुगल, बामपंथियो और आजादी के बाद सत्ता चलाने वाले नेताओं ने राजपूताना इतिहास को उल्टा कर दिया ।

चंगेज खान और तैमूर के वंशज बाबर ने अपनी आत्मकथा पुस्तक "बाबरनामा"में अपने समय राजपूत "राणा सांगा"जी की शक्ति का वर्णन किया है, कि कैसे खानवा के युद्ध से पहले जिसमे उसने तोपो बंदुखो/बारूदो का इस्तेमाल नहीं किया था और उस कन्वेंशनल युद्ध में जिसे बयाना का युद्ध कहा जाता है। उस परंपरागत हुए युद्ध में किस तरह राजपूतों ने उसे बुरी तरह परास्त किया था। 


जब चंगेज खान का वंशज और मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर ने लिखा कि राजपूत अपनी वीरता तलवार पराक्रम के बल उस समय सबसे बड़ी शक्ति थे। जिनका सामना करने की हिम्मत दिल्ली गुजरात मालवे के सुल्तानों में एक भी बड़े सुल्तान में नहीं थी। 


ये ताकत राजपूतों की शुरुआती 16 वी सदी में थी। जब तुर्क अफ़ग़ान शक्तियां भी अपने चरम पर थी। तो राजपूतों को उनसे प्रमाण की जरूरत नहीं जिनका 18 वी सदी से पहले कोई इतिहास ही नहीं।


पूरे उपमहाद्वीप में कोई गैर राजपूत शक्ति नहीं जिनके सैनिक शक्ति का वर्णन अरबों तुर्क अफगानो से लेकर अंग्रजों तक किताबों में दर्ज हो। 


राणा सांगा और राजपूतों की शक्ति का वर्णन "तारीख ए अहमद शाही उर्फ तारीख ए सलतानी अफगाना में 16 वी सदी के प्रसिद्ध अफ़ग़ान इतिहासकार अहमद यादगार सहित कई अफ़ग़ान इतिहासकारों ने भी किया है, कि कैसे मुट्ठी भर राजपूतों की सेनाओं ने इब्राहिम लोधी के अपने से दो से तीन गुना संख्या में ज्यादा होने के बावजूद अफ़ग़ान घुड़सवारों को परास्त किया था।

Popular posts
इतिहास दोहराया जा रहा है
समाज लक्ष्य शिक्षा और संस्कार हो
*राजपूतों का होता पतन* *राजपूतों की क्षीण होती शक्ति का सबसे बड़ा कारण है कि राजपूत नेता एवं हम सभी लोग सिर्फ़ अपनी बड़ाई { प्रशंसा } सुनना चाहते हैं, दूसरों के ख्याति नाम सुनते ही जल जाते हैं। क्षत्रिय समाज के अधिकतर लोगों का स्वाभिमान धीरे - धीरे अभिमान और अभिमान अहम् या अहंकार में बदल जाता है।* राजपूतों के पतन का असली कारण आपसी लड़ाई और एक दूसरे को आगे न बढ़ानेदेने की प्रवृत्ति है। दूसरा कारण है समाज का एक सर्वमान्य नेता का न होना। *अतः वक्त के साथ क्षत्रिय समाज स्वयं की समीक्षा कर अपने अंदर मौजूद अच्छाई और बुराई में से बुराई का तिरस्कार कर अहम् का त्याग करते हुए हर कोई एक दूसरे का पीठ पीछे सम्मान के साथ नाम ले। मेरा दावा है कि वर्तमान वक्त में इससे पूरे देश में शक्तिशाली क्षत्रिय समाज बनेगा। एकता रूपी शक्ति से हर क्षेत्र में स्थापित होकर क्षत्रिय झंडा लहराएगा।*
*भविष्य से अनजान राजपूत संगठन* रोहतास सिंह चौहान, विचारक देश में राजपूत संगठनों की बाढ़ सी आ गई हैं किसी भी संगठन के पास समाज की उन्नति का कोई मंत्र नही है सारे नेता अपनी स्वार्थ सिद्धि का मंत्र जप कर राजनेतिक रोटी सेक रहे है।आज के समय अक्सर यह चर्चा चल रही है कि हमारे इतिहास को तोडा़-मरोडा़ जा रहा है तथा अन्य जातियां हमारे महापुरुषों को चुरा रही है। तथा राजपूतों का फिल्मों में गलत चित्रण किया जा रहा है लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि ये सब हो रहा था तब राजपूत क्या कर रहे थे और अब क्या कर रहे हैं। अधिकांश राजपूतों को अपने इतिहास का मूल ज्ञान ही नहीं है तथा मनोनीत एवं लक्ष्य विहीन राजपूत सभाओं के कारण राजपूतों के सैकड़ों संगठन है और वे किसी भी मुद्दे पर एकमत नहीं हैं। समाज के लिए समर्पित लोगों का पूर्णतया अभाव है। जिन पूर्वजों के नाम से हम गौरवान्वित महसूस करते हैं उनकी छतरियां व प्रतिमा दयनीय हालत में है। राम मंदिर का शिलान्यास 5 अगस्त 2020 को माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा किया गया था तथा वर्तमान में राम मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है लेकिन ट्रस्ट में एक भी राजपूत सदस्य नहीं हैं। जबकि राजपूतों ने बढ़-चढ़कर सहयोग दिया है। वर्तमान अयोध्या का निर्माण सम्राट विक्रमादित्य द्वारा पांच कोस में करवाया गया था और अब राम मंदिर बनने के कारण अयोध्या विश्व स्तरीय धार्मिक स्थल बनने जा रहा है ऐसी दशा में राजा महाराजाओं एवं राजपूत समाज की धरोहरें, जमीन इत्यादि सरकार व अन्य लोग खुर्द बुर्द करने में लगे हुए हैं। परंतु अभी तक भारत वर्ष के किसी भी राजपूत संगठन ने इस सम्बन्ध में कोई रणनीति तय नहीं की है। अन्य समाज के लोग सौ वर्ष आगे की सोचते हैं और हम तो वर्तमान से भी अनभिज्ञ हैं। भारत वर्ष के राजपूत यदि अब भी सोते रहे तो भविष्य में सभी सम्पतियों से हाथ धोना पड़ेगा। *इसलिए सभी राजपूत संगठनों से अनुरोध है कि आप अयोध्या में राजपूत समाज एवं राजा महाराजाओं की सम्पत्तियों को बचाने में सहयोग प्रदान करावे तथा इनका जिर्णोद्धार करावे ताकि अयोध्या की यात्रा के समय राजपूत इनमें ठहर सकें। उत्तर प्रदेश सरकार से यह मांग की जाती है कि वह --- १. एक मुख्य गेट एवं सड़क का नामकरण सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर किया जाये । २. अयोध्या में सम्राट विक्रमादित्य की अश्वारूढ़ प्रतिमा स्थापित कर स्मारक का निर्माण करवाया जाय। 3 नौजवान भटकाव की रहा पर है उन्हे रास्ता दिखाने के लिए कोचिंग व कौंसलिंग सेंटर खोले जाय । 4 समाज की दिशा ,दशा सुधारने के लिए सत्ता में समाज की भागीदारी का प्रयास हो ।
अयोध्या की कहानी
Image