*हल्दीघाटी युद्ध के परम योद्धा राजा रामशाह तोमर की वीरगाथा* रोहतास सिंह चौहान,इतिहासकार मध्यभारत के प्रमुख राज्य ग्वालियर पर तोमरों ने 130 वर्ष तक राज किया था । राजा वीरसिंह देव से लेकर राजा विक्रमादित्य तक 9 पीढ़ियों ने ग्वालियर पर एक छत्र शासन किया । उनके गौरव मय इतिहास की कीर्ति पताका आज भी क़िले मे बने उनके स्मारक ओर रचित ग्रन्थों से जानी जा सकती हैं । राजा मानसिंह जी तो भारतीय इतिहास के विरले राजा थे जिन्होंने ग्वालियरी संगीत घराने को जन्म दिया जिस कारण महान संगीतज्ञ बिरजु ओर तानसेन निकले । राजा मानसिंह के योग्य पुत्र राजा विक्रमादित्य ने सात वर्षों तक लोदियों का मुक़ाबला किया एवं भारतमाता की रक्षा करते हुए पानीपत के युद्ध में बाबर से मुक़ाबला करते हुए रणक्षेत्र में वीरगति पाई। राजा विक्रमादित्य के युवराज राजा रामशाह हुए । इन्होंने अपने जीवन काल मे हिंदुस्थान के 9 से अधिक बादशाह देखे ओर तीन मेवाड़ के महाराणा । अपने जीवन में सात वर्ष की अवस्था में पिता के वीरगति प्राप्त करने के पश्चात 1526 से 1558 तक चम्बल के बीहड़ में ऐसाहगढ़ में रहकर अपने खोए राज्य की प्राप्ति में लगे रहे । अंत में जब अकबर की सेना ने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया तब अपने पाँच सौ योद्धाओ के साथ महाराणा उदयसिंह जी के पास मेवाड़ पहुँचे । मेवाड़ के अधिपति ने राजा रामशाह का भव्य स्वागत किया । मेवाड़ में रहते इन्हें बारीदासोंर ओर भेंसरोड़गढ़ की जागीर , प्रति दिवस 801 रुपए नित्य ख़र्च के देने का आदेश दिया । चितोड़ के 1567 के युद्ध में राजा रामशाह भी थे लेकिन उनके भाग्य में हल्दीघाटी में वीरगति पाना लिखा था , इसलिये महाराणा उदयसिंह जी अपने साथ इन्हें भी वहाँ से साथ लेकर निकल गये । महाराणा प्रताप के राज्यारोहण में इनकी विशेस भूमिका थी । जब हल्दीघाटी के युद्ध का बिगुल बजा तब सबसे पहले राणा प्रताप ओर सभी सामन्त गण इनके डेरे पर ही बैठक करने एकत्रित हुए थे । महाराणा इनका बहुत आदर करते थे जब इन्होंने पहाड़ों मे युद्ध करने क सलाह दी तब मेवाड़ के वीरो ने इनका उपहास किया । युद्ध खुले मैदान में करने का निर्णय हुवा । मेवाड़ की फोज के हरावल पंक्ति में महाराणा स्वम ओर दक्षिणी पंक्ति में राजा रामशाह अपने तीनो पुत्रों व पाँच सौ वीरों के साथ लड़े । युद्ध का विकराल स्वरुप ओर उसमें लड़ने वाले वीरों की अदम्य शूरवीरता के किसे आज सभी के समुख हैं । राजा रामशाह अपने तीनो पुत्रों व तीन सो वीरों के साथ रक्त तलाई में मेवाड़ की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये। मेरा शोभाग्य हैं की में उनकी वंश परम्परा में 17 वें वंशधर होने का गौरव रखता हु । मेने इन पर शोध पूर्ण पुस्तक भी लिखने का प्रयास किया हैं । मेवाड़ के प्रसिद्ध इतिहासविद समाजसेवी सेवनिवृत्ति आई. ए. एस . श्री सज्जन सिंह जी राणावत साहेब का में ऋणी हु जिन्होंने मेरे शोध के समय मेरे पत्र के जवाब में लिखा था “ हम सब मेवाड़ वासी राजा रामशाह के नमक के चुकारे के अहसानमंद हैं “ मेने इस पत्र को पढ़ने के बाद इन भावो को समझा तब मुजे अपने पूर्वजों पर असीम गर्व हुवा । राजा रामशाह ओर उनको पुत्रों की वीरता पर लिखने से तो अल्बदायु भी अपनी लेखनी को रोक नहीं सका । हल्दीघाटी के युद्ध में दोनो ही पक्ष के योद्धाओं को अपने जीवन ओर प्राणो से बढ़कर मान- प्रतिष्ठा की चिन्ता थी ( Price of life was low , but the honour was high ) राजारामशाह के ज्येष्ठ पुत्र युवराज शालिवाहन की राजकुमारी से महाराणा अमरसिंह जी का विवाह हुवा था जिनके गर्भ से महाराणा करण सिंह जी का जन्म हुवा । हल्दीघाटी युद्ध के अनेक वर्षों के बाद महाराणा करणसिंह जी ने अपने नाना के ऊपर खमनोर गाँव में छतरियाँ बनवाई जो राजा रामशाह के बलिदान की वीर गाथा का गुणगान करती हैं । वैसे मेवाड़ के लोग मान समान तो बहुत करते हैं लेकिन मेवाड़ के राजघराने ने अब ग्वालियर के तोमर परिवार को लगभग भुला दिया हैं ।

 *हल्दीघाटी युद्ध के परम योद्धा राजा रामशाह तोमर की वीरगाथा* 

रोहतास सिंह चौहान,इतिहासकार 

मध्यभारत के प्रमुख राज्य ग्वालियर पर तोमरों ने 130 वर्ष तक राज किया था । राजा वीरसिंह देव से लेकर राजा विक्रमादित्य तक 9 पीढ़ियों ने ग्वालियर पर एक छत्र शासन किया । उनके गौरव मय इतिहास की कीर्ति पताका आज भी क़िले मे बने उनके स्मारक ओर रचित ग्रन्थों से जानी जा सकती हैं । राजा मानसिंह जी तो भारतीय इतिहास के विरले राजा थे जिन्होंने ग्वालियरी संगीत घराने को जन्म दिया जिस कारण महान संगीतज्ञ बिरजु ओर तानसेन निकले । 


राजा मानसिंह के योग्य पुत्र राजा विक्रमादित्य ने सात वर्षों तक लोदियों का मुक़ाबला किया एवं भारतमाता की रक्षा करते हुए पानीपत के युद्ध में बाबर से मुक़ाबला करते हुए रणक्षेत्र में वीरगति पाई। 

राजा विक्रमादित्य के युवराज राजा रामशाह हुए । इन्होंने अपने जीवन काल मे हिंदुस्थान के 9 से अधिक बादशाह देखे ओर तीन मेवाड़ के महाराणा । अपने जीवन में सात वर्ष की अवस्था में पिता के वीरगति प्राप्त करने के पश्चात 1526 से 1558 तक चम्बल के बीहड़ में ऐसाहगढ़ में रहकर अपने खोए राज्य की प्राप्ति में लगे रहे । अंत में जब अकबर की सेना ने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया तब अपने पाँच सौ  योद्धाओ के साथ महाराणा उदयसिंह जी के पास मेवाड़ पहुँचे । 


मेवाड़ के अधिपति ने राजा रामशाह का भव्य स्वागत किया । मेवाड़ में रहते इन्हें बारीदासोंर ओर भेंसरोड़गढ़ की जागीर , प्रति दिवस 801 रुपए नित्य ख़र्च के देने का आदेश दिया । 

चितोड़ के 1567 के युद्ध में राजा रामशाह भी थे लेकिन उनके भाग्य में हल्दीघाटी में वीरगति पाना लिखा था , इसलिये महाराणा उदयसिंह जी अपने साथ इन्हें भी वहाँ से साथ लेकर निकल गये । 


महाराणा प्रताप के राज्यारोहण में इनकी विशेस भूमिका थी । जब हल्दीघाटी के युद्ध का बिगुल बजा तब सबसे पहले राणा प्रताप ओर सभी सामन्त गण इनके डेरे पर ही बैठक करने एकत्रित हुए थे । महाराणा इनका बहुत आदर करते थे जब इन्होंने पहाड़ों मे युद्ध करने क सलाह दी तब मेवाड़ के वीरो ने इनका उपहास किया । युद्ध खुले मैदान में  करने का निर्णय हुवा । 


मेवाड़ की फोज के हरावल पंक्ति में महाराणा स्वम ओर दक्षिणी पंक्ति में राजा रामशाह अपने तीनो पुत्रों व पाँच सौ वीरों के साथ लड़े । युद्ध का विकराल स्वरुप ओर उसमें लड़ने वाले वीरों की अदम्य शूरवीरता के किसे आज सभी के समुख हैं । 

राजा रामशाह अपने तीनो पुत्रों व तीन सो वीरों  के साथ रक्त तलाई में मेवाड़ की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये। 


मेरा शोभाग्य हैं की में उनकी वंश परम्परा में 17 वें वंशधर होने का गौरव रखता हु । मेने इन पर शोध पूर्ण पुस्तक भी लिखने का प्रयास किया हैं । 

मेवाड़ के प्रसिद्ध इतिहासविद समाजसेवी सेवनिवृत्ति आई. ए. एस . श्री सज्जन सिंह जी राणावत साहेब का में ऋणी हु जिन्होंने मेरे शोध के समय मेरे पत्र के जवाब में लिखा था “ हम सब मेवाड़ वासी राजा रामशाह के नमक के चुकारे के अहसानमंद हैं “ मेने इस पत्र को पढ़ने के बाद इन भावो को समझा तब मुजे अपने पूर्वजों पर असीम गर्व हुवा । राजा रामशाह ओर उनको पुत्रों की वीरता पर लिखने से तो अल्बदायु भी अपनी लेखनी को रोक नहीं सका । 


हल्दीघाटी के युद्ध में दोनो ही पक्ष के योद्धाओं को अपने जीवन ओर प्राणो से बढ़कर मान- प्रतिष्ठा की चिन्ता थी ( Price of life was low , but the honour was high ) 

राजारामशाह के ज्येष्ठ पुत्र युवराज शालिवाहन की राजकुमारी से महाराणा अमरसिंह जी का विवाह हुवा था जिनके गर्भ से महाराणा करण सिंह जी का जन्म हुवा । हल्दीघाटी युद्ध के अनेक वर्षों के बाद महाराणा करणसिंह जी ने अपने नाना के ऊपर खमनोर गाँव में छतरियाँ बनवाई जो राजा रामशाह के बलिदान की वीर गाथा का गुणगान करती हैं । वैसे मेवाड़ के लोग मान समान तो बहुत करते हैं लेकिन मेवाड़ के राजघराने ने अब ग्वालियर के तोमर परिवार को लगभग भुला दिया  हैं ।

Popular posts
इतिहास दोहराया जा रहा है
समाज लक्ष्य शिक्षा और संस्कार हो
*राजपूतों का होता पतन* *राजपूतों की क्षीण होती शक्ति का सबसे बड़ा कारण है कि राजपूत नेता एवं हम सभी लोग सिर्फ़ अपनी बड़ाई { प्रशंसा } सुनना चाहते हैं, दूसरों के ख्याति नाम सुनते ही जल जाते हैं। क्षत्रिय समाज के अधिकतर लोगों का स्वाभिमान धीरे - धीरे अभिमान और अभिमान अहम् या अहंकार में बदल जाता है।* राजपूतों के पतन का असली कारण आपसी लड़ाई और एक दूसरे को आगे न बढ़ानेदेने की प्रवृत्ति है। दूसरा कारण है समाज का एक सर्वमान्य नेता का न होना। *अतः वक्त के साथ क्षत्रिय समाज स्वयं की समीक्षा कर अपने अंदर मौजूद अच्छाई और बुराई में से बुराई का तिरस्कार कर अहम् का त्याग करते हुए हर कोई एक दूसरे का पीठ पीछे सम्मान के साथ नाम ले। मेरा दावा है कि वर्तमान वक्त में इससे पूरे देश में शक्तिशाली क्षत्रिय समाज बनेगा। एकता रूपी शक्ति से हर क्षेत्र में स्थापित होकर क्षत्रिय झंडा लहराएगा।*
*भविष्य से अनजान राजपूत संगठन* रोहतास सिंह चौहान, विचारक देश में राजपूत संगठनों की बाढ़ सी आ गई हैं किसी भी संगठन के पास समाज की उन्नति का कोई मंत्र नही है सारे नेता अपनी स्वार्थ सिद्धि का मंत्र जप कर राजनेतिक रोटी सेक रहे है।आज के समय अक्सर यह चर्चा चल रही है कि हमारे इतिहास को तोडा़-मरोडा़ जा रहा है तथा अन्य जातियां हमारे महापुरुषों को चुरा रही है। तथा राजपूतों का फिल्मों में गलत चित्रण किया जा रहा है लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि ये सब हो रहा था तब राजपूत क्या कर रहे थे और अब क्या कर रहे हैं। अधिकांश राजपूतों को अपने इतिहास का मूल ज्ञान ही नहीं है तथा मनोनीत एवं लक्ष्य विहीन राजपूत सभाओं के कारण राजपूतों के सैकड़ों संगठन है और वे किसी भी मुद्दे पर एकमत नहीं हैं। समाज के लिए समर्पित लोगों का पूर्णतया अभाव है। जिन पूर्वजों के नाम से हम गौरवान्वित महसूस करते हैं उनकी छतरियां व प्रतिमा दयनीय हालत में है। राम मंदिर का शिलान्यास 5 अगस्त 2020 को माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा किया गया था तथा वर्तमान में राम मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है लेकिन ट्रस्ट में एक भी राजपूत सदस्य नहीं हैं। जबकि राजपूतों ने बढ़-चढ़कर सहयोग दिया है। वर्तमान अयोध्या का निर्माण सम्राट विक्रमादित्य द्वारा पांच कोस में करवाया गया था और अब राम मंदिर बनने के कारण अयोध्या विश्व स्तरीय धार्मिक स्थल बनने जा रहा है ऐसी दशा में राजा महाराजाओं एवं राजपूत समाज की धरोहरें, जमीन इत्यादि सरकार व अन्य लोग खुर्द बुर्द करने में लगे हुए हैं। परंतु अभी तक भारत वर्ष के किसी भी राजपूत संगठन ने इस सम्बन्ध में कोई रणनीति तय नहीं की है। अन्य समाज के लोग सौ वर्ष आगे की सोचते हैं और हम तो वर्तमान से भी अनभिज्ञ हैं। भारत वर्ष के राजपूत यदि अब भी सोते रहे तो भविष्य में सभी सम्पतियों से हाथ धोना पड़ेगा। *इसलिए सभी राजपूत संगठनों से अनुरोध है कि आप अयोध्या में राजपूत समाज एवं राजा महाराजाओं की सम्पत्तियों को बचाने में सहयोग प्रदान करावे तथा इनका जिर्णोद्धार करावे ताकि अयोध्या की यात्रा के समय राजपूत इनमें ठहर सकें। उत्तर प्रदेश सरकार से यह मांग की जाती है कि वह --- १. एक मुख्य गेट एवं सड़क का नामकरण सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर किया जाये । २. अयोध्या में सम्राट विक्रमादित्य की अश्वारूढ़ प्रतिमा स्थापित कर स्मारक का निर्माण करवाया जाय। 3 नौजवान भटकाव की रहा पर है उन्हे रास्ता दिखाने के लिए कोचिंग व कौंसलिंग सेंटर खोले जाय । 4 समाज की दिशा ,दशा सुधारने के लिए सत्ता में समाज की भागीदारी का प्रयास हो ।
अयोध्या की कहानी
Image